कई दिनो से
घर के बाहर
चक्कर लगाते-लगाते
एक दिन अचानक वो
ठहरा, झिझकता हुआ बोला
मै डरते-डरते मुस्कुरा दी
बात ही कुछ ऎसी थी
जो खास न होते हुए भी
लगी कुछ खास सी
परन्तु उसे कुछ खास बनाने को
लालायित थी मै भी
मेरा समर्पण भी
नही था कुछ कम
किन्तु,परन्तु,लेकिन
शब्दों का जमावड़ा मिटा
बात बस हाँ की थी
और हाँ में ठहर गई
अब वो लगाता नही चक्कर
घर के बाहर
घर में ही रहता है
परन्तु
मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को
जो मेरे लिये
कुछ भी कर सकने का
जुनून रखती थी
मेरी हाँ पाने के बाद
मगर आज
किन्तु,परन्तु,लेकिन में लिपट गई है--
Sunday, December 13, 2009
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15 comments:
परन्तु
मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को
जो मेरे लिये
कुछ भी कर सकने का
जुनून रखती थी
मेरी हाँ पाने के बाद
मगर आज
किन्तु,परन्तु,लेकिन में लिपट गई है--
वाह....बहुत सुंदर .....इस किन्तु,परन्तु में आपने दिल की बातें कह दीं .....!!
bahut gahre, bhaw bhare ehsaason ko sanjoya hai......
aapka naam?
सुन्दर भाव , हां के बाद,पालेने की सफ़लता के अहं में किन्तु-परन्तु ---बडी सुन्दर कहानी है।
मार्मिक रचना! मेहरबानी कर word verification हटा दें.
मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को
जो मेरे लिये
कुछ भी कर सकने का
जुनून रखती थी
मेरी हाँ पाने के बाद
मगर आज
किन्तु,परन्तु,लेकिन में लिपट गई है--
कम शब्दों में काफी कुछ समेटे हुए अक अच्छी रचना
uff! kya baat kah di..........nishabd kar diya.
बहुत ही सुंदर रचना है। ब्लाग जगत में द्वीपांतर परिवार आपका स्वागत करता है।
pls visit....
www.dweepanter.blogspot.com
ये किन्तु परन्तु ही छलावा करते हैं सुन्दर अभिव्यक्ति
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
आपका बहुत बहुत धन्यवाद....
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति!!
बहुत ख़ुशी हुई आपसे मिल कर.....
"मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को"
शब्द और भावों को सुंदर संयोजन - अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा
good poem of my liking,pl keep it up and post regularly please.
thankfully
dr.bhoopendra
jeevansandarbh.blogspot.com
umda prastuti
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