Thursday, November 19, 2009

मेरी डायरी का पहला पन्ना

डायरी जो ज़ुबान होती है दिल की,
कह देती है बहुत कुछ बिन कहे ही,
सोचा मैने भी
लिख डालू मै भी
कुछ बातें जो न कह पाऊँगी
कभी तुमसे
हाँ कभी भी
शायद तुम भी कभी
अकेले में सोच रहे होंगे
क्या कहना था मुझे
शायद न पढ़ पाओगे तुम कभी
मेरी तनहाई,मेरी बेचैनी
न ही पढ़ पाओगे
मुझे क्या चाहिये तुमसे
क्या तुम दे पाये।
बीते दिनो का लेखा जोखा सभी कुछ
न लिख पाऊँ मगर
लिख ही दूँगी वे जरूरी बातें
जो मुझे तुमसे कहनी थी।