Tuesday, April 17, 2012

मै जीना चाहती थी


जो लिख दिया एक बार मिटाया तो नही जा सकता...



मै जीना चाहती थी
हाँ लिखा भी था तुम्हे एक दिन
मै जीना चाहती थी
ज्यादा कुछ तो मांगा ही नही था
बस चंद सांसे
उधार वो भी...
खैर कोई बात नही
तुम्हारी ज़रूरतें ज्यादा है
मुझसे
मै नही समझ सकी कि
तुम्हे चाहना
तुम्हे टूट कर चाहना भी
तुम्हे आहत कर जायेगा
और मज़बूर कर देगा तुम्हे
मुझसे हटकर सोचने के लिये
दीमक भी पूरा नही चाट खाती
ज़िंदगी दरख्त की
तुमने क्यों सोच लिया
कि मै वजह बन जाऊँगी
तुम्हारी साँसो की घुटन
तुम्हारी परेशानी की
और
तुम्हे तलाश करनी पड़ेगी वजहे
गोरख पांडॆ की डायरी या फिर
परवीन शाकिर के चुप हो जाने की
ये सच है मै जीना चाहती थी
तुमसे मांगी थी चंद साँसे
उधार वो भी….

1 comment:

सुनीता शानू said...

मेरे कुछ मित्रों के आवश्यक कमैंट...
धन्यवाद आप सभी का
shikha varshneyApr 12, 2012 01:37 AM
गज़ब...

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ASHA BISHTApr 12, 2012 02:05 AM
chnd saase udhar wo bhi....bahut khoob

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Vibha Rani ShrivastavaApr 12, 2012 02:17 AM
दीमक भी पूरा नहीं चाट खाती .... !
ज़िन्दगी दरख़्त की ..... !!

कडवी लेकिन सच .... !!

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सदाApr 12, 2012 04:31 AM
अनुपम भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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kamlesh kumar diwanApr 12, 2012 08:20 AM
achchi kavita hai

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Sunil KumarApr 12, 2012 09:21 AM
कुछ अलग सी पोस्ट सच्चाई से कही गयी बात अच्छी लगी

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sushma 'आहुति'Apr 12, 2012 08:16 PM
यार्थार्थ को दर्शाती अभिवयक्ति..

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डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"(Dr.Rajendra Tela,Nirantar)"Apr 12, 2012 09:56 PM
tumhaaree saanso kee ghutan aur pareshaanaa samajh nahee aa rahee hai,
sadaa hansne waalee aaj ro kyoon rahee hai
aansoo paunchho aur uth jaao
udhaar saanso par jeenaa chhod do

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मनोज कुमारApr 13, 2012 02:21 AM
कभी-कभी ये चंद सांसे जीने का कितना बड़ा सहारा बन जाती हैं, उसे एक संवेदनशील मन ही समझ सकता है। कविया की संवेदना पाठकों तक पहुंचती है।
मेरे जैसा पाठक जो गोरख पांडे की डायरी या परवीन शाकिर की चुप्पी को न जानता हो, उसे इस बिम्ब के प्रयोग से थोड़ी कठिनाई तो हो समती है लेकिन अर्थ स्पष्ट है ..।

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