Tuesday, April 17, 2012

मै जीना चाहती थी


जो लिख दिया एक बार मिटाया तो नही जा सकता...



मै जीना चाहती थी
हाँ लिखा भी था तुम्हे एक दिन
मै जीना चाहती थी
ज्यादा कुछ तो मांगा ही नही था
बस चंद सांसे
उधार वो भी...
खैर कोई बात नही
तुम्हारी ज़रूरतें ज्यादा है
मुझसे
मै नही समझ सकी कि
तुम्हे चाहना
तुम्हे टूट कर चाहना भी
तुम्हे आहत कर जायेगा
और मज़बूर कर देगा तुम्हे
मुझसे हटकर सोचने के लिये
दीमक भी पूरा नही चाट खाती
ज़िंदगी दरख्त की
तुमने क्यों सोच लिया
कि मै वजह बन जाऊँगी
तुम्हारी साँसो की घुटन
तुम्हारी परेशानी की
और
तुम्हे तलाश करनी पड़ेगी वजहे
गोरख पांडॆ की डायरी या फिर
परवीन शाकिर के चुप हो जाने की
ये सच है मै जीना चाहती थी
तुमसे मांगी थी चंद साँसे
उधार वो भी….

Sunday, December 13, 2009

मेरी हाँ

कई दिनो से
घर के बाहर
चक्कर लगाते-लगाते
एक दिन अचानक वो
ठहरा, झिझकता हुआ बोला
मै डरते-डरते मुस्कुरा दी
बात ही कुछ ऎसी थी
जो खास न होते हुए भी
लगी कुछ खास सी
परन्तु उसे कुछ खास बनाने को
लालायित थी मै भी
मेरा समर्पण भी
नही था कुछ कम
किन्तु,परन्तु,लेकिन
शब्दों का जमावड़ा मिटा
बात बस हाँ की थी
और हाँ में ठहर गई
अब वो लगाता नही चक्कर
घर के बाहर
घर में ही रहता है
परन्तु
मेरी आँखे तलाशती है
उन बोलती आँखों को
जो मेरे लिये
कुछ भी कर सकने का
जुनून रखती थी
मेरी हाँ पाने के बाद
मगर आज
किन्तु,परन्तु,लेकिन में लिपट गई है--

Thursday, November 19, 2009

मेरी डायरी का पहला पन्ना

डायरी जो ज़ुबान होती है दिल की,
कह देती है बहुत कुछ बिन कहे ही,
सोचा मैने भी
लिख डालू मै भी
कुछ बातें जो न कह पाऊँगी
कभी तुमसे
हाँ कभी भी
शायद तुम भी कभी
अकेले में सोच रहे होंगे
क्या कहना था मुझे
शायद न पढ़ पाओगे तुम कभी
मेरी तनहाई,मेरी बेचैनी
न ही पढ़ पाओगे
मुझे क्या चाहिये तुमसे
क्या तुम दे पाये।
बीते दिनो का लेखा जोखा सभी कुछ
न लिख पाऊँ मगर
लिख ही दूँगी वे जरूरी बातें
जो मुझे तुमसे कहनी थी।