Tuesday, April 17, 2012

मै जीना चाहती थी


जो लिख दिया एक बार मिटाया तो नही जा सकता...



मै जीना चाहती थी
हाँ लिखा भी था तुम्हे एक दिन
मै जीना चाहती थी
ज्यादा कुछ तो मांगा ही नही था
बस चंद सांसे
उधार वो भी...
खैर कोई बात नही
तुम्हारी ज़रूरतें ज्यादा है
मुझसे
मै नही समझ सकी कि
तुम्हे चाहना
तुम्हे टूट कर चाहना भी
तुम्हे आहत कर जायेगा
और मज़बूर कर देगा तुम्हे
मुझसे हटकर सोचने के लिये
दीमक भी पूरा नही चाट खाती
ज़िंदगी दरख्त की
तुमने क्यों सोच लिया
कि मै वजह बन जाऊँगी
तुम्हारी साँसो की घुटन
तुम्हारी परेशानी की
और
तुम्हे तलाश करनी पड़ेगी वजहे
गोरख पांडॆ की डायरी या फिर
परवीन शाकिर के चुप हो जाने की
ये सच है मै जीना चाहती थी
तुमसे मांगी थी चंद साँसे
उधार वो भी….